Friday, June 28, 2019

इंदिरा सरकार से अलग होने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जगजीवन राम

क्या आपने सचिन का पहला मैच देखा जो उन्होंने यॉर्कशायर में खेला था?
हमलोग साथ में ही गए थे. काफी प्रैक्टिस की थी. सचिन ने कहा था कि सोली भाई एक काम करना है मुझे, शतक बनाना है. मैंने कहा ठीक है. पहले उसने 50 रन बनाए, फिर 60, फिर 70, फिर 80 और अंत में 86 रन पर आउट हो गया.
इससे वो बहुत निराश हुआ कि वो 100 नहीं बना सका. 86 रन बनाने की जितनी खुशी नहीं थी, उससे कहीं ज्यादा आउट होने का गम था.
रात के करीब 11, साढ़े 11 बजे किसी ने खटखटाया. मैंने दरवाजा खोला. सचिन खड़ा था. मैं पूछा कि तुम यहां क्या कर रहे हो?
उसने कहा कि सोली भाई मैं जा रहा हूं, आपके और भाभी के पैर छूने आया हूं. मैंने तो तीन-चार सौ क्रिकेटर बुलाए होंगे, ये एकलौता खिलाड़ी था जो जाने से पहले मेरे और मेरी पत्नी के पैर छू कर गया.
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25 जून 1975 की सुबह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के फ़ोन की घंटी बजी. उस समय वह दिल्ली में ही बंग भवन के अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे.
दूसरे छोर पर इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन थे जो उन्हे प्रधानमंत्री निवास पर तलब कर रहे थे. जब राय 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे तो इंदिरा गांधी अपनी स्टडी में बड़ी मेज़ के सामने बैठी हुई थीं जिस पर ख़ुफ़िया रिपोर्टों का ढ़ेर लगा हुआ था.
अगले दो घंटों तक वो देश की स्थिति पर बात करते रहे. इंदिरा का कहना था कि पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है. गुजरात और बिहार की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं. इस तरह तो विपक्ष की मांगों का कोई अंत ही नहीं होगा. हमें कड़े फ़ैसले लेने की ज़रूरत है.
इंदिरा ने निर्देश दिए कि मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को अगली सुबह 5 बजे फ़ोन कर बताया जाए कि सुबह 6 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है. जब तक आधी रात होने को आ चुकी थी लेकिन सिद्धार्थ शंकर राय अभी भी 1 सफ़दरजंग रोड पर मौजूद थे. वो इंदिरा के साथ उस भाषण को अंतिम रूप दे रहे थे जिसे इंदिरा अगले दिन मंत्रिमंडल की बैठक के बाद रेडियो पर देश के लिए देने वाली थीं.
बीच बीच में संजय उस कमरे में आ जा रहे थे. एक दो बार उन्होंने 10-15 मिनटों के लिए इंदिरा गांधी को कमरे से बाहर भी बुलाया. उधर आर के धवन के कमरे में संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिन्हें गिरफ़्तार किया जाना था. उस लिस्ट के अनुमोदन के लिए इंदिरा को बार बार कमरे से बाहर बुलाया जा रहा था.
ये तीनों लोग इस बात की भी योजना बना रहे थे कि अगले दिन कैसे समाचारपत्रों की बिजली काट कर सेंसर शिप लागू की जाएगी. जब तक इंदिरा ने अपने भाषण को अंतिम रूप दिया सुबह के तीन बज चुके थे.
सेंसरशिप
राय ने इंदिरा से विदा ली लेकिन गेट तक पहुंचते पहुंचते वो ओम मेहता से टकरा गए. उन्होंने उन्हें बताया कि अगले दिन अख़बारों की बिजली काटने और अदालतों को बंद रखने की योजना बना ली गई है.
राय ने तुरंत इसका विरोध किया और कहा, "ये बेतुका फ़ैसला है. हमने इसके बारे में तो बात नहीं की थी. आप इसे इस तरह से लागू नहीं कर सकते."
इंदिरा ने ये भी कहा कि वो अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और उन्हें डर है कि कहीं उनकी सरकार का भी सीआईए की मदद से चिली के राष्ट्रपति सालवडोर अयेंदे की तरह तख़्ता न पलट दिया जाए.
मज़े की बात ये थी कि उन्होंने तब तक अपने कानून मंत्री एचआर गोखले से इस बारे में कोई सलाह मशविरा नहीं किया था. राय ने कहा कि मुझे वापस जाकर संवैधानिक स्थिति को समझने दीजिए. इंदिरा राज़ी हो गईं लेकिन यह भी कहा कि आप 'जल्द से जल्द' वापस आइए.
राय ने वापस आकर न सिर्फ़ भारतीय बल्कि अमरीकी संविधान के संबद्ध हिस्सों पर नज़र डाली. वो दोपहर बाद तीन बज कर तीस मिनट पर दोबारा 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे और इंदिरा को बताया कि वो आंतरिक गड़बड़ियों से निपटने के लिए धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर सकतीं हैं.
इंदिरा ने राय से कहा कि वो आपातकाल लगाने से पहले मंत्रिमंडल के सामने इस मामले को नहीं लाना चाहतीं. इस पर राय ने उन्हें सलाह दी कि वो राष्ट्रपति से कह सकतीं हैं कि मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था.
इंदिरा ने सिद्धार्थ शंकर राय से कहा कि वो इस प्रस्ताव के साथ राष्ट्रपति के पास जाएं. कैथरीन फ़्रैंक अपनी किताब इंदिरा में लिखती हैं कि इसका राय ने ये कह कर विरोध किया कि वो पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हैं, प्रधानमंत्री नहीं.
हाँ उन्होंने ये पेशकश ज़रूर कर दी कि वो उनके साथ राष्ट्रपति भवन चल सकते हैं. ये दोनों शाम साढ़े पांच बजे वहाँ पहुंचे. सारी बात फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को समझाई गई. उन्होंने इंदिरा से कहा कि आप इमरजेंसी के कागज़ भिजवाइए.
जब राय और इंदिरा वापस 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे तब तक अंधेरा घिर आया था. राय ने इंदिरा के सचिव पीएन धर को ब्रीफ़ किया. धर ने अपने टाइपिस्ट को बुला कर आपातकाल की घोषणा के प्रस्ताव को डिक्टेट कराया. सारे कागज़ों के साथ आर के धवन राष्ट्रपति भवन पहुँचे.

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